Tuesday, 24 December 2013
सामाजिक महिलाओ का दर्द नहीं समझ सकती ---घरेलु महिलाये
चाहे कितनी भी प्राकृतिक क्षमताये हो परन्तु सामाजिक महिलाओ का दर्द नहीं समझ सकती ---घरेलु महिलाये -क्यूंकि उन्होंने अपनी क्षमताओ को पति के प्रेम या जीवन में इतना घोल दिया है कि वो अपना अस्तित्व स्वाधीन रूप में समझ ही नहीं सकती पर अगर वो समझने का प्रयास करने लगे तो अपने पति ,भाई ,पिता ,पुत्र को चरित्रवान बन्ने में मदद कर सकती है उनके ऐसा न करने पर ही बहुत से पुरुष ना चाहते हुए भी -दूसरी सक्रिय महिलाओ की और आकर्षित हो जाते है । ऐसा भी होता है कि जब कभी वो किसी वास्तविक भली महिलाओ की मदद करना भी चाहते है तो उनकी पत्नियों की संकीर्ण मानसिकता के चलते नहीं कर पाते और घुटन का शिकार हो जाते है जो कभी भी अवसर मिलते ही उनके चारित्रिक पतन का कारण बन जाती है । यदि घरेलु महिलाये भी राष्ट्र ,समाज कि समस्याओ में विचारा करना सीख ले तो वो प्रत्येक सामाजिक महिला के संघर्स को नमन करने के लिए बाध्य हो जाएंगी ।
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