मायका ही नहीं रहा आज--लडकियों का -बहु पत्नी बनकर रह जाती है ---------आपने इस बात पर शायद इतना अधिक ध्यान न दिया हो --लेकिन जो छूटता है वो माँ का पेट भी होता है ,माँ का घर भी होता है --जो छोड़ता नहीं हाथ वो दिल का साथ ,विचारो का साथ और विकास का गगन होता है ---और ममत्व में लिपटी कमजोर माँ अपने बच्चो का मोह करती भी है तब भी छूट जाते है बंधन -----अपने मातृत्व के कर्तव्यो को निभा कर उसे आगे बढना चाहिए -----अपने प्रतीक्षारत कर्तव्यो के उन क्षेत्रो को --जहाँ अगर उसकी दृष्टि नहीं गयी तो ----मानसिक संतुलन और विकास में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका -जो संवेदनशीलता से परिपूर्ण है -कैसे तय हो सकेगी -------
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