जो भी मनुष्य आत्म विश्लेषण ,आत्म आलोचना करने में पारंगत होता है उन्हें समझना आसान नहीं होता ----संवाद करने से समझ बढ़ती है और संवेदनाये उकेरने से भावनात्मक विस्तार होता है --------और जड़ता को - जो आत्म विश्लेषण -आत्म आलोचना न करने से उत्पन्न हो ही जाती है --उसको झकझोरने के मामूली आसार और अवसर दिखते है ।
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